पश्चिम बंगाल में जूट की कृषि की समस्याएँ ?

                            जूट (Jute)

जूट पश्चिम बंगाल की प्रमुख औद्योगिक एवं नगदी फसल है। जूट की फसल से प्राप्त रेशे से बोरे, टाट, गलीचे, रस्सी, सुतली, परदे आदि विभिन्न वस्तुओं का निर्माण होता है। इसलिए इसका व्यावसायिक महत्त्व काफी अधिक है। यह प्रमुख मुद्रादायिनी फसल है। इसलिए इसे स्वर्णिम रेशा (Golden fibre) कहा जाता है। 


जूट के उत्पादन में पश्चिम बंगाल का भारत में पहला स्थान है। भारत के कुल जूट उत्पादन का लगभग 73.95% जूट अकेले पश्चिम बंगाल में उत्पन्न होता है। 

पश्चिम बंगाल में जूट की कृषि के लिए निम्नलिखित अनुकूल दशाएँ विद्यमान हैं :-

(1) उच्च तापक्रम- जूट उष्ण कटिबन्ध का पौधा है। इसकी कृषि के लिए 25°C-30°C तापक्रम की आवश्यकता पड़ती है।
पश्चिम बंगाल कर्क रेखा के समीप है, अतः यहाँ गर्मी में तापक्रम ऊँचा रहता है। 

(2) अधिक वर्षा - जूट का पौधा जल के प्रति बड़ा सहिष्णु है। जूट की कृषि के लिए 150-200 से. मी. वर्षा की आवश्यकता पड़ती है। पश्चिम बंगाल में बंगाल की खाड़ी से उठने वाली मानसूनी हवाओं से खूब वर्षा होती है।

(3) डेल्टाई मिट्टी- जूट की कृषि के लिए दोमट एवं जलोढ़ मिट्टी सर्वोत्तम होती है। जूट का पौधा भूमि की उर्वराशक्ति को नष्ट कर देता है। खाद देकर जूट उगाने में विशेष लाभ नहीं होता है। अतः इसकी कृषि डेल्टाई क्षेत्रों में अधिक होती है। पश्चिम बंगाल में हुगली नदी के डेल्टाई भाग में प्रति वर्ष बाढ़ के द्वारा नई मिट्टी जमा होती रहती है। यह मिट्टी जूट की कृषि के लिए वरदान सिद्ध हुई है।

(4) स्वच्छ जल - जूट के पौधे से रेशा प्राप्त करने के लिए उसे कई दिनों तक सड़ाना पड़ता है, फिर उसे जल में पटककर धोया जाता है। अत: इसके लिए पर्याप्त स्वच्छ एवं मीठे जल की आवश्यकता पड़ती है। पश्चिम बंगाल में नदियों, तालाबों एवं नहरों से जूट को सड़ाने व साफ करने के लिए पर्याप्त जल मिल जाता है।

(5) सस्ता श्रम- जूट की फसल उगाने, काटने, सड़ाने, धोने तथा डण्ठल से रेशा अलग करने के लिए पर्याप्त एवं सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है। पश्चिम बंगाल की आबादी अधिक है। उत्तर प्रदेश, बिहार एवं उड़ीसा से भी यहाँ सस्ते श्रमिक मिल जाते हैं।

प्रमुख जूट उत्पादक जिले - पश्चिम बंगाल के जूट के क्षेत्र हुगली नदी के दोनों ओर गंगा के डेल्टाई क्षेत्र में स्थित है। प्रमुख जूट उत्पादक जिले बर्द्धमान, उत्तर चौबीस परगना, मुर्शिदाबाद, नदिया, पश्चिमी दिनाजपुर, मालदा, पूर्व एवं पश्चिम मेदिनीपुर, हुगली, कूचबिहार तथा जलपाईगुड़ी हैं। 

पश्चिम बंगाल में जूट की कृषि की समस्याएँ :-

पश्चिम बंगाल में जूट की कृषि के लिए निम्नलिखित समस्याएँ हैं- 

(1) स्वच्छ जल की कमी :- बढ़िया किस्म का जूट प्राप्त करने के लिए इसे स्वच्छ जल में पटक कर धोना पड़ता है। स्वच्छ जलाशय वहीं मिलता है, जहाँ बाढ़ द्वारा गन्दा जल बहता जाता है तथा नया स्वच्छ जल जमा होता जाता है। परन्तु पश्चिम बंगाल में ऐसे जलाशयों का अभाव है, इस कारण बढ़िया किस्म का जूट प्राप्त करना कठिन है।


(2) चावल की कृषि की बाध्यता :- पश्चिम बंगाल में बढ़ती हुई जनसंख्या की उदर पूर्ति के लिए किसानों को बाध्य होकर जूट के खेतों में चावल की खेती करनी पड़ती है।

(3) किसानों को उचित मूल्य का न मिलना की कृषि करने में विशेष रुचि नहीं लेते हैं। किसानों को जूट का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है, फलस्वरूप किसान जूट

(4) प्रति एकड़ उपज की कमी :- जूट का प्रति हेक्टेयर उपज काफी कम है।

                  जूट उद्योग (Jute Industry)

यह भारत के अत्यन्त प्राचीन उद्योगों में से है तथा सूती वस्त्र उद्योग के बाद यह भारत का दूसरा सुसंगठित उद्योग है। जूट उद्योग एवं उससे निर्मित सामानों के निर्यात पर भारत का एकाधिकार है। निर्यात द्वारा विदेशी मुद्रा प्राप्त करने का यह प्रमुख स्रोत है। भारत में इसका पहला कारखाना सन् 1859 ई० में हुगली नदी के किनारे रिसड़ा में खुला। भारत में इस समय 73 जूट की मिलें हैं। इनमें केवल पश्चिम बंगाल में ही 59 मिलें हैं।

जूट उद्योग में भारत में पश्चिम बंगाल राज्य का पहला स्थान है। यहाँ की समस्त जूट की मिलें कोलकाता के समीप हुगली नदी के दोनों किनारों पर उत्तर में बाँसबेरिया से दक्षिण में बिरलापुर तक प्राय: 96 किलोमीटर लम्बी तथा 4 किलोमीटर चौड़ी पट्टी में स्थित हैं। इस राज्य से देश के 85% जूट के सामानों का उत्पादन किया जाता है। 

इस क्षेत्र में जूट उद्योग के केन्द्रित होने के निम्नलिखित कारण हैं:-

(1) कच्चे माल की समीपता :- जूट का प्रधान उत्पादन क्षेत्र गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टाई भाग है। पश्चिम बंगाल भारत में जूट का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। हम कुछ जूट बंगलादेश से भी आयात करते हैं।


(2) शक्ति के साधन :- रानीगंज तथा झरिया से कोयला मिल जाता है। दामोदर घाटी तथा मयूराक्षी योजनाओं से सस्ती जलविद्युत मिल जाती है।

(3) यातायात की सुविधा :- हुगली नदी द्वारा सस्ते जल यातायात की सुविधा प्राप्त है। रेल, सड़क तथा जलमार्ग द्वारा यह भाग देश के भीतरी भागों से जुड़ा है।

(4) सस्ते श्रमिक :- अधिक आबादी होने से बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश एवं पश्चिम बंगाल से सस्ते श्रमिक मिल जाते हैं। 

(5) कोलकाता बन्दरगाह की समीपता :- कोलकाता बन्दरगाह द्वारा मशीनरी एवं आवश्यक उपकरण मँगाने तथा तैयार माल निर्यात करने की सुविधा है।

(6) पूँजी की सुविधा :- यहाँ पूँजीपति रहते हैं। बैंकों तथा पूँजीपतियों द्वारा भी पूँजी प्राप्त करने की सुविधा प्राप्त है।

(7) स्वच्छ जल की सुविधा :- जूट धोने व रँगने के लिए हुगली नदी द्वारा स्वच्छ जल प्राप्त हो जाता है।

(8) पूर्वारम्भ की सुविधा :- ब्रिटिश काल में यहाँ सबसे पहले जूट के मिलों की स्थापना हुई थी। अतः यहाँ पूर्वारम्भ की सुविधा है।

यहाँ के जूट उद्योग के प्रमुख केन्द्र बाली, आगरपाड़ा, टीटागढ़, रिसड़ा, श्रीरामपुर, श्यामनगर, नैहट्टी, कांकीनारा, उलबेरिया, बजबज, कोन्नगर, हावड़ा एवं सलकिया आदि हैं।


पश्चिम बंगाल में जूट उद्योग की समस्या एवं समाधान (Problems and solutions of Jute industry in West Bengal)

जूट उद्योग की समस्याएँ (Problems of Jute Industry) :

1. कच्चे माल की कमी :- 1947 ई० में देश के विभाजन के कारण अधिकांश जूट उत्पादक क्षेत्र पूर्वी पाकिस्तान (अब बंगलादेश) में चले गये परन्तु अधिकांश जूट के कारखाने पश्चिम बंगाल में ही रह गये। इससे कच्चे माल की कमी हो जाती है। 


2. विदेशी प्रतिस्पर्धा :- अब बंगलादेश, चीन, थाइलैण्ड तथा इण्डोनेशिया में भी जूट के कारखाने खुल गये हैं। अतः पश्चिम बंगाल में जूट उद्योग को प्रबल प्रतियोगिता का सामना करना पड़ रहा है।

3. जूट के बोरों की माँग में कमी :- विश्व में जूट के कई स्थानापन्न ( Substitutes) भी हो गए हैं। कहीं-कहीं कागज के थैलों और कहीं-कहीं अन्य रेशों के थैलों का प्रयोग किया जाता है। कनाडा में तो बिना बोरों में भरे ही गेहूँ को जहाजों में भर कर निर्यात कर दिया जाता है। इस प्रकार विश्व बाजार में जूट के बोरों की माँग घट रही है।

4. पुरानी मशीनें : पश्चिम बंगाल के जूट के कारखानों में ब्रिटिश काल की पुरानी मशीनें हैं। वे घिस पिट गई हैं और आधुनिक समय के अनुकूल नहीं है। इससे उत्पादन खर्च अधिक पड़ता है और माँग के अनुसार वस्तुएँ नहीं बन पाती हैं।) 


समस्याओं का समाधान (Solution of problems) :- इन समस्याओं के समाधान के लिए भारत सरकार ने निम्नलिखित उपाय किये हैं -

(1) जूट के आवश्यक प्रयोग के लिए कानून :- जूट उद्योग को नष्ट होने से बचाने के लिए भारत सरकार ने सन् 1987 में एक कानून बनाकर खाद्यान्न, सीमेण्ट, खाद आदि वस्तुओं में जूट के बोरों का प्रयोग आवश्यक कर दिया है।

(2) आधुनिक मशीनों का प्रयोग :- जूट उद्योग के सम्बन्ध में कई प्रकार के अनुसंधान किये गये हैं। पुरानी मशीनों को हटाकर उनके स्थान पर नयी आधुनिक मशीनें लगायी जा रही हैं। 
(3) जूट मिलों का राष्ट्रीयकरण :- भारत सरकार ने रुग्ण जूट मिलों का प्रबन्ध अपने हाथ में लेकर उन्हें बंद होने से बचा लिया है।

(4) भारतीय जूट निगम की स्थापना :- 1971 ई० में भारत सरकार ने 'जूट कॉरपोरेशन ऑफ इण्डिया' नामक संस्था की स्थापना की जो जूट का मूल्य निर्धारित करता है, जिससे किसानों एवं जूट के कारखानों- दोनों के हितों की रक्षा होती है।

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